लव्ज़
कुछ लव्ज़ किताबों की कटोरी में डाल रखे हैं, कुछ पेश होने हैं, कुछ अर्ज़ करके चखे हैं, कुछ लबों की मुँडेरों पे कोनियाँ टेक के लटके हैं, कुछ आँखों से बयान हैं तो कुछ ज़बान में दुबके हैं, पर बात जनाब तो करनी ही है तो कहने से क्यों …
कुछ लव्ज़ किताबों की कटोरी में डाल रखे हैं, कुछ पेश होने हैं, कुछ अर्ज़ करके चखे हैं, कुछ लबों की मुँडेरों पे कोनियाँ टेक के लटके हैं, कुछ आँखों से बयान हैं तो कुछ ज़बान में दुबके हैं, पर बात जनाब तो करनी ही है तो कहने से क्यों …
आसमान के काले पर्दे पर मैंने तेरे लिए चौधवीं का चाँद उभारा है, उसकी रोशनी न मद्धम पड़े इसलिए सभी सितारों को ज़मीन पर उतारा है।
तेरे दीदार को तरसे ये आँखें, ख़ुदा ना ऐसी हालत करे, बल्कि तू इन आँखों में समा जाए, ख़ुदा हम पे इतनी खिदमत करे।
तुम्हारी पलकों पे हमने अपनी नींदों को रखा है, हमारे दिल की हर धड़कन तुम्हारी सदा है, तुम्हारे बिन जीना हमारे लिए सज़ा है, ये दिल तुम पे, सिर्फ तुम पे फिदा है।