चौधवीं का चाँद

आसमान के काले पर्दे पर मैंने तेरे लिए चौधवीं का चाँद उभारा है, उसकी रोशनी न मद्धम पड़े इसलिए सभी सितारों को ज़मीन पर उतारा है।

रास्ते

रास्ते के नुमाइंदों को बता देना जनाब, हम गिर पड़े हैं हमें उठा लेना जनाब, हम चलते चलते थक गए थे ऐ साथी, हम मंज़िल ना पा पाए, फट गए जूते, घिस गयी जुराब, मंज़िलों को चाहिए जाने कैसा शबाब, हमें ना पता थे उन सवालों के जवाब, हम गिरे …