काल

ऐ माँ, अब तेरे आग़ोश में मैं समाए जा रहा हूँ,
पर तेरे कर्ज़ का ये सिला मैं तुझे दिये जा रहा हूँ,
के खून से अपने धो दिया है मैंने वो पथ,
जिस पर चले थे माँ तेरे दुश्मनों के रथ,
तेरे लिए मैं जान भी अपनी कुर्बान किए जा रहा हूँ,
ऐ माँ, तेरे आग़ोश में मैं समाए जा रहा हूँ।

अब और ना देखी जाए मुझसे ये जंग,
जो खेलती है ना सिर्फ औरतों के सुहागों के संग,
पर ये करती भी है कई बच्चों को अनाथ,
बिछुड़ जाता है उनसे उनके माँ-बाप का साथ,
ऐ ख़ुदा दे मोक्ष मुझे, ये ही उम्मीद लिए जा रहा हूँ,
ऐ माँ, तेरे आग़ोश में मैं समाए जा रहा हूँ।

पर-दर-पल मैं महसूस कर रहा हूँ अब और भी तन्हा,
अब लेने जा रहा हूँ भगवान की पनाह,
आशा करता हूँ, हो ये मेरा जन्म आखरी,
इस मोह-जाल से मेरा अंत हो,
देख परछाईं काल की।

काश्मीर

तारों की टिमटिमाहट से,
पानी में झिलमिलाहट से,
पलकों की हल्की-सी आहट से,
जो मन में उभरे, जो मन में पनपे,
ये उस स्वर्ग की तस्वीर है,
ये कश्मीर है, काश्मीर है।

बहती हवा की सरसराहट से,
फूलों पे भवरों की गुनगुनाहट से,
एक मासूम-सी कली की शरमाहट से,
जो मन को मंत्रमुग्ध करके, करती अपने अधीन है,
ये कश्मीर है, काश्मीर है।

जहाँ भूमी और अंबर का होता मिलन,
जहाँ चैनो-अमन का था कभी वातावरण,
वो धरा पूछती है इंसान से बता ज़रा,
किसने तुझे ये हक़ दिया,
के तूने ऊपरवाले की इस धरती को,
टुकड़ों में बाँटने का साहस किया,
वो इस प्रश्न पर खामोश है,
उस जश्न में मदहोश है,
जो बरपा रहा है कहर,
बह रही है लहू की लहर,
कैसे इस कहर को रोकूँ,
कैसे उस लहर को टोकूँ,
जब हाथों में बंधी ज़ंजीर है,
ये कश्मीर है, काश्मीर है।

कुछ लकीरों से बंटा हुआ,
और तलवारों से कटा हुआ,
ज़ुल्म से अधमरा हुआ,
ज़ख्मी इसका शरीर है,
जो स्वयं अपने अस्तित्व की भीख मांगे, ये वो फकीर है,
ये कश्मीर है, काश्मीर है।

और फिर एक बच्चे ने अपनी माँ से पूछा,
“माँ क्या ये मेरा कश्मीर है?”
माँ ने कहा, दूर वो मंज़र जहाँ स्वर्ग की तस्वीर है,
वो जो तेरे कर्मों की ताबीर है,
वो तेरा कश्मीर है, वो तेरा काश्मीर है।

उड़ान

संसार की रंझिशों को तोड़ कर मैं उड़ चला बादलों में कहीं,
हर पल, हर लम्हा, मैं भरता हूँ एक उड़ान नई,
संसार की रंझिशों को तोड़ कर मैं उड़ चला बादलों में कहीं।

वो बंदिशें, वो फासलें, जब खुली हवा में साँस लें,
महसूस करता हूँ मैं ऐसा,
के उस नए जन्म में ले गया मैं खुशनुमा अरमान कई,
संसार की रंझिशों को तोड़ कर मैं उड़ चला बादलों में कहीं।

मेरी फिक्र बिल्कुल क्षीण थी, मेरा दुख बिल्कुल क्षीण था,
मैं बस हर ऊंचाई को छूने में लीन था,
झूम रहा था आसमान, झूम रही थी ये ज़मीन,
जब मैंने खुली हवा में एक नई सांस ली,
बस सुख ही सुख था, बस सुख ही सुख था,
महसूस किया न दुख फिर कभी,
संसार की रंझिशों को तोड़ कर मैं उड़ चला बादलों में कहीं।

आँसू

सबकी आँखों से निकला दुख का वो ग़मगीन नज़ारा हूँ मैं,
सबकी खुशी को बयान करता आँखों का वो इशारा हूँ मैं,
सबकी आँखों से बही नीर की एक धारा हूँ मैं,
सबके गालों पे चमका वो टिमटिमा सितारा हूँ मैं,
कुछ पल की बस मेरी हस्ती मैं गिर के सूख जाऊँगा,
पर फिर जब दर्द का स्पर्श पाओगे,
पर फिर जब खुशी का आँचल थाम पाओगे,
मैं फिर आँखों से बहूँगा, वो आँसू तुम्हारा हूँ मैं,
सबकी आँखों से निकला दुख का वो ग़मगीन नज़ारा हूँ मैं…