राह
अंजान इस खेल में, तुझसे हथेलियों के मेल में, मैंने अपनी ज़िंदगी की राह मोड़ ली, जब तेरी किस्मत की रेखा से, मैंने अपनी तक़दीर की लकीर जोड़ ली।
अंजान इस खेल में, तुझसे हथेलियों के मेल में, मैंने अपनी ज़िंदगी की राह मोड़ ली, जब तेरी किस्मत की रेखा से, मैंने अपनी तक़दीर की लकीर जोड़ ली।
रास्ते के नुमाइंदों को बता देना जनाब, हम गिर पड़े हैं हमें उठा लेना जनाब, हम चलते चलते थक गए थे ऐ साथी, हम मंज़िल ना पा पाए, फट गए जूते, घिस गयी जुराब, मंज़िलों को चाहिए जाने कैसा शबाब, हमें ना पता थे उन सवालों के जवाब, हम गिरे …