लव्ज़
कुछ लव्ज़ किताबों की कटोरी में डाल रखे हैं, कुछ पेश होने हैं, कुछ अर्ज़ करके चखे हैं, कुछ लबों की मुँडेरों पे कोनियाँ टेक के लटके हैं, कुछ आँखों से बयान हैं तो कुछ ज़बान में दुबके हैं, पर बात जनाब तो करनी ही है तो कहने से क्यों …
कुछ लव्ज़ किताबों की कटोरी में डाल रखे हैं, कुछ पेश होने हैं, कुछ अर्ज़ करके चखे हैं, कुछ लबों की मुँडेरों पे कोनियाँ टेक के लटके हैं, कुछ आँखों से बयान हैं तो कुछ ज़बान में दुबके हैं, पर बात जनाब तो करनी ही है तो कहने से क्यों …
अंजान इस खेल में, तुझसे हथेलियों के मेल में, मैंने अपनी ज़िंदगी की राह मोड़ ली, जब तेरी किस्मत की रेखा से, मैंने अपनी तक़दीर की लकीर जोड़ ली।
तेरे नैनों की सीप के तले, मुझे सपनों के मोती मिले, कुछ ग़मगीन थे, कुछ खुशहाल भी, कुछ बेरंग तो कुछ रंगों से भरे।
गीली मिट्टी से सने हाथों की रौनक, खिली रोशनी से भरीं किरणों की ठंडक, चुप-चाप-सी बहती फिज़ा के पैरों की आहट, नादान-से मासूम नैनों के सपनों की रंगत, कितनी खूबसूरत तूने ये दुनिया बनाई है, के हर ज़र्रे से, है मिलती ख़ुदाई है।
काली रात के कपड़े तले, मैंने सुबह तक तेरे लिए, आसमान पे बादलों की खटाई जमाई है, हवाओं के बर्तन में परोस के फिर तुझे भिजवाई है।
तेरे आँखों के काले सूरज, सफेद आसमानों में उभर कर, जमे आसुओं की रेत पे कजरारे पावों से चल कर, पलकों की पगडंडियों से बने मेरे सपनों के आँगनों में, अपने नूर की रोशनी बिखेरे हैं, जो तेरे नैना गिरें तो होती रातें हैं, जो उठें तो फिर खिलती सवेरें …
हर लम्हा यहाँ महकशी का आलम, हर पल महकशी का मौसम ही है, जिसकी वजह से ये जाम है, वो हमारे जानम ही हैं।
बहती हवाओं को चुटकियों से बांधा है, नीली-नीली रस्सियों पे सूरज को टांगा है, आसमान की चादर पे फीके तारे बिखेरे हैं, अंगूरी कुछ धागे पिरोहे, कुछ संतरी उधेड़े हैं।
रोज़-दर-रोज़ हवा में बिछीं इन ओस की बूंदों से ये ही फसाना बयान होता है, इस ही वजह से हर परवाना क्षमा पर कुर्बान होता है, के तुम जियो मुद्दतों तक, जियो जब तक ये ज़मीन, ये आसमान होता है, गर कयामत भी आए तो समा थाम लेंगे क्योंकि तुमसे …
लोग तो पीते हैं जाम शराब के, ग़म भुलाने के लिए पीना, होते हैं तरीके कुछ जनाब के, खुशगवार मौकों पर पीते हैं जो वो रखते हैं शौक़ नवाब के, पर हम तो उन्में से हैं जो आँसू पी कर नशा करते हैं, के ख़ुदा भी गवाह रहे, के कोई …
ये इश्क़ ही ज़िंदगी, ये इश्क़ ही इमान होता है, वो ही इश्क़, इश्क़ कहलता है जिसमें आशिक बदनाम होता है।
रास्ते के नुमाइंदों को बता देना जनाब, हम गिर पड़े हैं हमें उठा लेना जनाब, हम चलते चलते थक गए थे ऐ साथी, हम मंज़िल ना पा पाए, फट गए जूते, घिस गयी जुराब, मंज़िलों को चाहिए जाने कैसा शबाब, हमें ना पता थे उन सवालों के जवाब, हम गिरे …
In 2010, when I was in deep internal conflict, I asked my friend Manish Bhoj, who I fondly call Narayan (because he has all the answers; yes, all of them), to answer this question: Why is the Hindi film industry producing so many crap movies? And he answered in an …